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Importance of Pitru Paksha: जानिए क्या है पितृ पक्ष का महत्व

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Importance of Pitru Paksha

Importance of Pitru Paksha: पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष या कनागत (Shraddha Paksh or Kanagat ) के रूप में भी जाना जाता है, यह 16 दोनों की अवधि होती है। जिसमें हर कोई अपने पूर्वजों को सम्मान देता है और श्राद्ध कर्म (Shraddha Karma) करता है। माना जाता है कि इन दिनों गायों, कुत्तों और कौवों को विभिन्न प्रकार के भोजन देने पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि अर्पित किया गया भोजन पितरों तक पहुंचता है और सभी रूपों में उन्हें तृप्त करता है।

पौराणिक ग्रंथों में भी कहा गया है कि देव पूजा से पहले सभी को अपने पितरों की पूजा करनी चाहिए। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय समाज या संस्कृति में रहते हुए भी घर के बड़े-बुजुर्गों का हर दृष्टि से सम्मान किया जाता है। इसके अलावा और क्या है पितृ पक्ष का महत्व आइए जानते हैं...

पितृ पक्ष का महत्व (Pitru Paksha Ka Mahatva) 

शास्त्रों के अनुसार किसी भी जातक को देवताओं की पूजा से पहले अपने पूर्वजों की पूजा करके उनसे आर्शीवाद प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि अगर घर के पितृ प्रसन्न रहते हैं तो देवताओं का आर्शीवाद स्वंय ही मिल जाता है। भारत में बुजूर्गां के सम्मान को विशेष महत्व दिया जाता है और मरने के बाद उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। 

इसके पीछे का कारण है कि जब तक पितरों का तर्पण नहीं किया जाता। तब तक उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है। उनकी आत्मा पृथ्वींलोक पर ही भटकती रहती है। 

ज्योतिषिय दृष्टिकोण से पितृ पक्ष को मनाने का कराण पितृ दोष से मुक्ति माना जाता है। जो व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित होता है। उसे जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं होती। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए पितरों की शांति परम आवश्यक है।

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पूर्वजों के श्राद्ध का दिन (Purvajo Ka Shradh Ka Din) 

पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व दिया जाता है। लेकिन इससे पहले पितरों की शांति के लिये पिंड दान या श्राद्ध कर्म भी किया जाता है। पितृ पक्ष उसी दिन किसी पूर्वज का श्राद्ध किया जाता है। जिस दिन वह पृथ्वीं लोक को छोड़कर गया हो।

उसी तिथि के दिन श्राद्ध कर्म किया जाता है। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिये कहा जाता है। 

समय से पहले यानि जिन परिजनों की किसी दुर्घटना अथवा सुसाइड आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।इसी के साथ पिता के लिए अष्टमी तिथि और माता के लिए नवमी तिथि को विशेष माना जाता है।


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