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Vat Purnima Importance: जानिए क्या है वट पूर्णिमा व्रत का महत्व

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Vat Purnima Importance

Vat Purnima Importance: वट पूर्णिमा व्रत (Vat Purnima Vrat) ज्येष्ठ माह (हिंदू कैलेंडर) की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो जॉर्जियाई कैलेंडर के अनुसार मई या जून (अधिकतर जून) में आता है। यह व्रत भारत में मुख्य रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक (Maharashtra and Karnataka) राज्यों में मनाया जाता है।

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सावित्री भारत में प्रसिद्ध एक पौराणिक कथा की नायिका हैं जो मृत्यु के देवता यम से अपने पति के प्राण वापस ले आई थीं। उन्होंने ऐसा ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को किया था, इसलिए इस दिन को वट पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। 

माना जाता है कि जो भी विवाहित महिला इस व्रत को करती है, उसके पति की उम्र लंबी होती है। इसके अलावा और क्या है वट पूर्णिमा का महत्व आइए जानते हैं...

वट पूर्णिमा का महत्व (Vat Purnima Significance)

वट सावित्री की तरह ही वट पूर्णिमा का व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। लेकिन कई जगहों पर वट पूर्णिमा के व्रत को अधिक महत्व दिया जाता है। वट एक पेड़ का नाम है जिसे बरगद के पेड़ के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। 

यह व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात व दक्षिण भारत में रखा जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए एक त्योहार की तरह है क्योंकि इसे केवल हिंदू विवाहित महिलाएं ही मनाती हैं।

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इन जगहों पर सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के 15 दिन बाद इस व्रत को रखती हैं। लेकिन इस व्रत के पीछे की पौराणिक कथा प्रत्येक जगह पर एक जैसी ही है। माना जाता है वट सावित्री और वट पूर्णिमा दोनों ही व्रत को करने से पति की उम्र लंबी होती है और घर में सुख शांति का वास होता है। 

ऐसा माना जाता है कि यदि कोई विवाहित महिला इस व्रत को मन से करती है तो उसे अगले सात जन्मों तक वैसा ही पति मिलता है।


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