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Mangla Gauri Vrat Puja Vidhi: यहां जानें मंगला गौरी व्रत की संपूर्ण पूजा विधि


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Mangla Gauri Vrat Puja Vidhi

Mangla Gauri Vrat Puja Vidhi:  मंगला गौरी का व्रत सावन माह में पड़ने वाले मंगलवार को किया जाता है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से कुंवारी लड़कियों के विवाह में आ रही सभी प्रकार की परेशानी समाप्त होती है और वहीं अगर कोई सुहागन महिला इस व्रत को करती है तो उसके वैवाहिक जीवन के सभी कष्ट समाप्त होते है। इस व्रत में विशेष रूप से माता गौरी की पूजा (Goddess Gauri) की जाती है। अगर आप भी मंगला गौरी व्रत करना चाहती हैं और आपको इस व्रत की पूजा विधि के बारे में नहीं पता है तो आज हम आपको मंगला गौरी व्रत की पूजन विधि (Mangla Gauri Vrat Pujan Vidhi) के बारे में बताएंगे तो बिना किसी देरी के चलिए डालते हैं मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि पर एक नजर...

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मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि (Mangla Gauri Vrat Ki Puja Vidhi)

1.मंगला गौरी व्रत सावन मास के पहले मंगलवार को रखा जाता है। इस दिन महिलाओं को स्नान करने के बाद कोरे वस्त्र ही धारण करने चाहिए।

2.इसके बाद एक साफ चौकी लेकर पूर्व दिशा की और मुख करके बैठें और फिर चौकी पर आधे भाग में सफेद कपड़ा बिछाकर चावल की नौ छोटी- छोटी ढेरी बनांए और आधे भाग में लाल कपड़ा बिछाकर गेहुं की सोलह ढेरी बनाएं। 

3.इसके बाद थोड़े से चावल चौकी पर अलग रखकर पान के पत्ते पर सातिया बनाएं और उस पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखें और ऐसे ही गेहूं की अलग ढेरी पर कलश स्थापित करें। उस पर पांच पान के पत्ते और नारियल रखें । 

4. इसके बाद चौमुखी दीपक में 16 रूई की बत्ती लगाकर जलाएं। दीपक को प्रज्ववलित करने के बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं इसके बाद गणेश जी को जनेऊ, रोली -चावल, सिंदूर चढ़ाएं और पूजन करने के बाद भोग लगांए

5.गणेश जी के पूजन के बाद भगवान शिव का भी विधिवत पूजन करें और उन्हें वस्त्र आदि अर्पित करें। इसके बाद एक साफ थाली में मिट्टी लें और उसमें गंगा जल मिलाकर उससे माता गौरी की प्रतिमा बनाएं। प्रतिमा बनाने के बाद उसे पंचामृत से स्नान कराएं और वस्त्र धारण कराएं। 

6. माता गौरी को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें और रोली - चावल, फूल माला, फल, पत्ते. आटे के लड्डू, पान, सुपारी, लोंग, इलायची तथा पांच मेवाओं का प्रसाद रखें। 

7.इसके बाद माता की कथा, मंत्र जाप करने के बाद आरती उतारें। सावन के प्रत्येक मंगलवार इसी तरह पूजन करें और अंत में प्रतिमा को विसर्जन कर दें। जब आपकी मन्नत पूरी हो जाए तब इस व्रत का उद्यापन कर दें।


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