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Devshayani Ekadashi 2025 Kab HaI: देवशयनी एकादशी 2025 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त और देवशयनी एकादशी की कथा

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Devshayani Ekadashi 2025 Kab Hai

Devshayani Ekadashi 2025 Kab Hai: देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। जिसे पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्याताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार माह की निद्रा अवस्था में चले जाते हैं और फिर देवउठनी एकादशी पर श्री हरि विष्णु अपनी निद्रा अवस्था से बाहर आते हैं। देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु के निद्रा अवस्था में जाने के बाद धरती पर कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। जिसके बाद इन चार माह तक पृथ्वीं का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं तो बिना किसी देरी के चलिए जानते हैं देवशयनी एकादशी 2025 में कब है (Devshayani Ekadashi 2025 Mein Kab Hai) ,देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त और देवशयनी एकादशी की कथा (Devshayani Ekadashi Shubh Muhurat and Devshayani Ekadashi Story)


देवश्यनी एकादशी 2025 तिथि (Devshayani Ekadashi 2025 Tithi)

6 जुलाई 2025

देवशयनी एकादाशी व्रत 2025 के पारण का समय (Devshayani Ekadashi Vrat 2025 Ke Paran Ka Samay)

देवशयनी एकादाशी व्रत के पारण का समय -सुबह 5 बजकर 29 मिनट से सुबह 8 बजकर 16 मिनट तक (6 जुलाई 2025)

देवशयनी एकादशी 2025 के प्रारंभ और समाप्त होने की तिथि (Devshayani Ekadashi 2025 Starting And Ending Time)

एकादशी का प्रारंभ- शाम 6 बजकर 58 मिनट से (5 जुलाई 2025) 

एकादशी की समाप्ति - अगले दिन रात 9 बजकर 14 मिनट तक (6 जुलाई 2025) 


देवशयनी एकादशी की कथा (Devshayani Ekadashi Story)

एक समय सुर्यवंश में मांधाता नाम का एक राजा हुआ करता था। वह बहुत ईमानदार, शांतिप्रिय और बहादुर था। राजा अपनी प्रजा की हर जरूरत का ख्याल रखता था और यह सुनिश्चित करता था कि उसका राज्य हमेशा खुशी और समृद्धि से भरा रहे। 

सब कुछ उत्कृष्ट चल रहा था और उसके शासनकाल में किसी भी प्रकार की कमी या गरीबी की चिंता नहीं थी। एक दिन उनके देश में एक घातक अकाल पड़ा, जिससे हर कोई भूख से मरने लगा। इसने राजा को आश्चर्यचकित कर दिया। क्योंकि उसके साम्राज्य में इस तरह की कोई भी घटना कभी नहीं हुई थी। 

उन्होंने अकाल से छुटकारा पाने का उपाय खोजने का निर्णय लिया। जिसके लिए वह जंगलों में चले गए। जहां उन्हें भगवान ब्रह्मा के एक पुत्र अंगिरा का आश्रम मिला। उन्होंने पवित्र ऋषि से प्रार्थना की कि वह उनके राज्य को ऐसे दुख से बाहर निकालें। निपुण वैरागी ने राजा को देवशयनी एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। 

राजा ने उनकी कही एक-एक बात का पालन किया और उसी का व्रत करना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में उनके राज्य को अकाल और सूखे से छुटकारा मिल गया और एक बार फिर शांति और समृद्धि कायम हो गई।

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