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Matangi Jayanti Puja Vidhi: जानिए क्या है मातंगी जयंती की संपूर्ण पूजा विधि

Matangi Jayanti Puja Vidhi Matangi Puja Benefits How to Worship Matangi Devi
Matangi Jayanti Puja Vidhi

Matangi Jayanti Puja Vidhi: मातंगी जयंती हर वर्ष वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। यह दिन अत्यंत ही खास होता है, क्योंकि इस दिन अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती (Akshaya Tritiya and Parshuram Jayanti) भी होती है। इसकी कारण से इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। मां मातंगी को 'तांत्रिक सरस्वती' के नाम से भी जाना जाता है। जो दस महाविद्याओं में से नवीं महाविद्या है। इस दिन जो भी साधक मां मातंगी की पूजा अर्चना (Goddess Matangi Puja) करता है, उसकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। वहीं उसे आनंदमय वैवाहिक जीवन का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावाा इस दिन माता मातंगी की पूजा 'तांत्रिक विद्या'  के लिए भी की जाती है तो बिना किसी देरी के चलिए डालते हैं मातंगी जयंती की पूजा पर एक नजर...

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मां मातंगी की पूजा विधि (Matangi Jayanti Ki Puja Vidhi)

1.मां मातंगी की पूजा शाम के समय की जाती है। इसलिए इस दिन शाम के समय ही मां मातंगी की पूजा करें और नीले रंग के वस्त्र धारण करके ही मां मातंगी की पूजा करें।

2.इसके बाद एक चौकी पर नीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर अष्टदल बनाएं और उस पर मां मातंगी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

3. मां मातंगी की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें लाल पुष्प, लाल अक्षत तथा लाल फल आदि अर्पित करें और धुप, दीप और अगरबत्ती जलाकर उनकी पूजा करें। 

4. इसके बाद मां मातंगी के मंत्रों का जाप करें और उनकी कथा पढ़े या सुनें और उन्हें मिठाई का भोग लगाएं

5.इसके बाद मां मातंगी की धूप व दीप से आरती उतारें और अपने परिवार की मंगल कामना करें और इसके बाद पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा याचना अवश्य करें।

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देवी मातंगी की पूजा से मिलते हैं ये लाभ (Matangi Puja Benefits)

देवी मातंगी जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं। जो व्यक्ति क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा'' मंत्र का जाप करता है वह निर्भय हो जाता है और उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। जिन लोगों को मां का प्यार नहीं मिल पा रहा हो या मां कष्ट से गुजर रही हो उन्हें मातंगी मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। 

देवी मातंगी भगवान शिव का ही एक रूप हैं। वह अपने माथे पर सफेद अर्धचंद्र धारण करती हैं। उनकी भुजाएं चारों दिशाओं में फैली हुई हैं। इसलिए इन्हें वाग्देवी के नाम से जाना जाता है। यह देवी सरस्वती का आदि रूप हैं। बेल के पत्तों से इनकी पूजा करने वाले व्यक्ति में आकर्षण सदैव ही बना रहता है। देवी मातंगी को उच्छिष्ट-चांडालिनी या उच्छिष्ट-मातंगिनी के नाम से भी जाना जाता है। 

दक्षिण भारत में इन्हें उच्छिष्ट मातंगी, राज मातंगी, सुमुखी, वैश्य मातंगी और करण मातंगी के नाम से पूजा जाता है। ब्रह्मयाल के अनुसार, संत मतंग ने तपस्या की और उन्हें बेटी के रूप में देवी मातंगी का आशीर्वाद मिला। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जब ऋषि मतंग जंगल में तपस्या कर रहे थे, तब देवी मातंगी विनाशकारी शक्तियों का दमन करने के लिए त्रुपुरसुर के तेज से राज मातंगी के रूप में प्रकट हुईं।



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