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Parshuram Jayanti Significance: परशुराम जयंती का महत्व

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Parshuram Jayanti Significance


Parshuram Jayanti Significance: परशुराम जयंती भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इनकी माता का नाम रेणुका और पिता सप्तर्षि ऋषि जमदग्नि हैं। अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाने वाली परशुराम जयंती के दिन लोग उपवास और भजन, सत्संग और जुलूस का आयोजन करते हैं। माना जाता है कि भगवान परशुराम ने कई बार पृथ्वीं को श्रत्रिय विहीन कर दिया था। भगवान विष्णु के अन्य अवतारों की तरह ही परशुराम जी का जन्म पृथ्वीं से बुराई का अंत करने के लिए हुआ था। इसकेअलावा और क्या है परशुराम जयंती का महत्व (Parshuram Jayanti Importance) आइए जानते हैं...

परशुराम जयंती का महत्व (Parshuram Jayanti Ka Mahatva)

हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम जी का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया  को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में हुआ था। परशुराम जी की माता का नाम रेणुका और पिता का नाम ऋषि जमदग्नि था।  माना जाता है कि भगवान परशुराम का जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था और जिस समय परशुराम जी का जन्म हुआ था उस समय पृथ्वीं पर दुष्ट राजाओं का आतंक था। उन्हीं में से एक राजा ने परशुराम जी के पिता का भी वध कर दिया था।

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जिससे क्रोधित होकर परशुराम जी ने 21 बार पृथ्वीं को क्षत्रिय विहिन कर दिया था। परशुराम जी को भगवान शिव ने एक परशु नाम का शस्त्र दिया था। इसी कारण से उन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि परशुराम जयंती के दिन भगवान परशुराम की पूजा करने से व्यक्ति के साहस में वृद्धि होती है और उसे भय से मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम को श्री हरि विष्णु का छठा अवतार बताया गया है।


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