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Chinnamasta Jayanti 2024 Date: छिन्नमस्ता जयंती 2024 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त और छिन्नमस्ता जयंती की कथा

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Chinnamasta Jayanti 2024 Date


Chinnamasta Jayanti 2024 Date: छिन्नमस्ता जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन मां छिन्नमस्ता की पूजा की जाती है। मां छिन्नमस्ता को दस महाविद्याओं (Dus Mahavidya) में से छठी महाविद्या माना जाता है। इन्हें प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है। छिन्नमस्ता जयंती के दिन जो भी साधक पूरी श्रद्धा से मां छिन्नमस्ता की पूजा करता है। उसके जीवन के बड़े-बड़े से कष्ट दूर हो जाते हैं। वहीं जो भी व्यक्ति अपने शत्रुओं से अत्याधिक परेशान हो, उसे इस दिन मां छिन्नमस्ता की पूजा ( Goddess Chinnamasta Puja) अवश्य करनी चाहिए तो बिना किसी देरी के चलिए जानते हैं छिन्नमस्ता जयंती 2024 में कब है (Chinnamasta Jayanti 2024 Mein Kab Hai), छिन्नमस्ता जयंती का शुभ मुहूर्त (Chinnamasta Jayanti Ka Shubh Muhurat) और छिन्नमस्ता जयंती की कथा (Chinnamasta Jayanti Story)



छिन्नमस्ता जयंती 2024 तिथि (Chinnamasta Jayanti 2024 Date)

21 मई 2024

छिन्नमस्ता जयंती 2024 शुभ मुहूर्त (Chinnamasta Jayanti 2024 Shubh Muhurat)

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - शाम 05 बजकर 39 मिनट से (21 मई 2024)

चतुर्दशी तिथि समाप्त - अगले दिन शाम 6 बजकर 47 मिनट तक (22 मई 2024)


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छिन्नमस्ता जयंती की कथा (Chinnamasta Jayanti Ki Katha)

शास्त्रों के अनुसार एक दिन मां पार्वती अपनी सहायिकाओं जया और विजया, जिन्हें डाकिनी और वर्णिनी के नाम से भी जाना जाता है, उनके साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान के बाद कामोत्तेजना के कारण मां पार्वती का रंग काला पड़ गया। 

उसी समय उनकी सहायिकाओं ने अत्यधिक भूख के कारण उनसे भोजन के लिए प्रार्थना की। उन्होंने प्रार्थना की और विनती करते हुए कहा कि, “हे ब्रह्मांड की माता, हम भूख से बहुत परेशान हैं! हमें भोजन दो ताकि हम संतुष्ट हो सकें, हे दयालु, वरदान देने वालीं और इच्छाओं को पूरा करने वालीं हम पर दया करो।

अपने भक्तों की इस सच्ची प्रार्थना को सुनकर, दयालु देवी मां मुस्कुराईं और अपने नाखूनों से उन्होंने अपना सिर काट दिया। जैसे ही उन्होंने अपना सिर काटा, उनका सिर उनके बाएं हाथ की हथेली पर गिर गया। 

तब उनके गले से तीन रक्त धाराएं निकलीं; रक्त की बायीं और दायीं धाराएं क्रमशः उनकी दोनों सहायिकाओं के मुंह में गिरीं और बीच की रक्तधारा उनके अपने मुंह में गिरी। अपने स्वयं के सिर को काटकर अपने भक्तों को भोजन देने के लिए आत्म-बलिदान के कार्य के बाद मां पार्वती को मां छिन्नमस्ता के रूप में पूजा जाने लगा।

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