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Kokila Vrat 2024 Date and Time: कोकिला व्रत 2024 में कब है,जानिए शुभ मुहूर्त और कोकिला व्रत की कथा

Kokila Vrat 2024 Date and Time Kokila Vrat 2024 Kab Hai Kokila Vrat Story
Kokila Vrat 2024 Date and Time

Kokila Vrat 2024 Date and Time: कोकिला व्रत की शुरुआत सबसे पहले माता पार्वती (Goddess Parvati) के द्वारा की गई थी। यह व्रत आषाढ़ मास की पूर्णिमा से प्रारंभ से होता है और इस व्रत की समाप्ति श्रावण मास की पूर्णिमा को होता है। यह व्रत महिलाओं के अत्यंत ही विशेष माना जाता है। क्योंकि इस व्रत को करने से सुहागन महिलाओं के पति को दीर्घायु प्राप्त होती है और कुंवारी लड़कियों को अच्छा वर प्राप्त होता है तो बिना किसी देरी के चलिए जानते हैं कोकिला व्रत 2024 में कब है (Kokila Vrat 2024 Mein Kab Hai), कोकिला व्रत का शुभ मुहूर्त (Kokila Vrat Shubh Muhurat) और कोकिला व्रत की कथा (Kokila Vrat Story)

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कोकिला व्रत 2024 तिथि (Kokila Vrat 2024 Date)

20 जुलाई 2024

कोकिला व्रत 2024 शुभ मुहू्र्त (Kokila Vrat 2024 Shubh Muhurat)

कोकिला व्रत प्रदोष पूजा मुहूर्त - शाम 7 बजकर 19 मिनट से रात 9 बजकर 22 मिनट तक (20 जुलाई 2024)

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ -  शाम 5 बजकर 59 मिनट से (20 जुलाई 2024)

पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगले दिन दोपहर 3 बजकर 46 मिनट तक (21 जुलाई 2024)

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कोकिला व्रत कथा (Kokila Vrat Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया। लेकिन अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात उनकी पुत्री माता सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से वहां जाने का आग्रह किया, लेकिन भगवान शंकर ने अपनी पत्नी को समझाने की बहुत कोशिश की कि जब निमंत्रण न आए तो नहीं जाना चाहिए, चाहे वह घर ही क्यों न हो। लेकिन सती माता ने उनकी बात नहीं मानी और वह अपने पिता के घर चली गईं, जहां उनके पिता ने भगवान शिव के बारे में बहुत ही अपमानजनक बातें कहीं।

जिसे माता सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने जलते हुए योग अग्नि कुंड में कूदकर खुद को भस्म कर लिया। जब भगवान शिव को यह खबर मिली तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने एक अवतार वीरभद्र को हवन को ध्वस्त करने और राजा दक्ष को मारने के लिए भेजा। वह इतने क्रोधित थे कि उन्होंने सती को अगले दस हजार वर्षों तक कोयल पक्षी बने रहने का श्राप दे दिया क्योंकि उन्होंने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया था। सती ने शैलजा के रूप में पुनर्जन्म लिया और भगवान शिव को अपने पति के रूप में वापस पाने के लिए आषाढ़ के पूरे महीने में उपवास किया।


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