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Kojagari Laxmi Puja 2025 Date and Time: कोजागरी लक्ष्मी पूजा 2025 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त और कोजागरी लक्ष्मी पूजा की कथा

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Kojagari Laxmi Puja 2025 Date and Time

Kojagari Laxmi Puja 2025 Date and Time: आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा और कोजागरी पूर्णिमा (Sharad Purnima ande Kojagiri Purnima) नाम से जाना जाता है। इस दिन को कोजागरी लक्ष्मी पूजा कहकर भी संबोधित किया जाता है। कोजागरी का अर्थ है कि रात्रि में कौन जाग रहा है। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी (Goddess Laxmi) समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थीं। इसकी कारण इस दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती और जो भी व्यक्ति इस दिन रात्रि में जागकर मां लक्ष्मी की पूजा करता है। उसे मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होत है तो बिना किसी देरी के चलिए जानते हैं कोजागरी लक्ष्मी पूजा 2024 में कब है (Kojagari Laxmi Puja 2024 Mein Kab Hai), कोजागरी लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त (Kojagari Laxmi Puja Shubh Muhurat) और कोजागरी लक्ष्मी पूजा की कथा (Kojagari Laxmi Puja Story)

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कोजागरी लक्ष्मी पूजा 2025 तिथि (Kojagari Laxmi Puja 2025 Date)

6 अक्टूबर 2025

कोजागरी लक्ष्मी पूजा 2025 शुभ मुहूर्त (Kojagari Laxmi Puja 2025 Shubh Muhurat)

कोजागरी लक्ष्मी पूजा निशिता काल -  रात 11 बजकर 45 मिनट (6 अक्टूबर 2025) से अगले दिन रात 12 बजकर 34 मिनट तक (7 अक्टूबर 2025)

कोजागरी लक्ष्मी पूजा के दिन चन्द्रोदय - शाम 5 बजकर 27 मिनट (6 अक्टूबर 2025)

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ -  दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से (6 अक्टूबर 2025)

पूर्णिमा तिथि समाप्त - अगले दिन सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक (7 अक्टूबर 2025)

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कोजागरी लक्ष्मी पूजा की कथा  (Kojagari Laxmi Puja Ki Katha)

प्राचीन काल में एक साहूकार था। जिसकी दो बेटियां थीं जो पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। साहूकार की बड़ी बेटी यह व्रत रखती थी और पूरे विधि-विधान से करती थी। वहीं दूसरी ओर उसकी छोटी बेटी अज्ञानतावश व्रत अधूरा छोड़ देती थी। जब वह व्रत पूरा करने में विफल रही तो देवी लक्ष्मी क्रोधित हो गईं। 

परिणामस्वरूप साहूकार की छोटी बेटी के बेटे मरने लगे। एक बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद उसका दूसरा बेटा मर जाता था। इससे साहूकार की छोटी बेटी को बहुत बुरा लगा और उसने एक साधु को अपनी समस्या बताई। जिसके बाद उस साधु ने साहूकार की छोटी बेटी को पूर्णिमा का व्रत को अधूरा छोड़ने की गलती के बारे में बताया। 

उसने साहूकार की बेटी को वचन दिया कि यदि वह पूर्णिमा व्रत का सही ढंग से पालन करेगी तो उसका बच्चा जीवित हो जाएगा। उसने उस साधु के निर्देशों का पालन किया और पूर्णिमा का व्रत पूरे अनुष्ठान के साथ किया। इससे उसे एक बच्चा हुआ, लेकिन कुछ दिनों बाद उस बच्चे की मृत्यु हो गई।

जिससे वह बहुत दुखी हुई और फिर उसे अपनी बड़ी बहन की याद आई। जिसके बाद उसने अपने बच्चे को लकड़ी के एक छोटे से टुकड़े पर लिटाया और उसके ऊपर कपड़ा लपेट दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे उसके ऊपर बैठने का इशारा किया। 

बड़ी बहन इस बात से पूरी तरह अनजान थी कि उस लकड़ी के टुकड़े के नीचे बच्चे का शव मिल है। जैसे ही वह बच्चे पर बैठी, उसका लहंगा बच्चे को छू गया और बच्चा जीवित हो गया और रोने लगा। बड़ी बहन ने जब यह देखा तो उसे डांटते हुए कहा, 'तू मुझे कलंकित करना चाहती थी, मेरे बैठने से यह मर जाता।' 

जिसके बाद छोटी बहन ने बड़ी बहन की बात सुनने के बाद आदरपूर्वक कहा कि यह तो पहले ही मर चुका था। यह केवल आपकी दृढ़ता और सदाचार के कारण ही जीवित हुआ है।




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