Chinnamasta Jayanti Importance: छिन्नमस्ता जयंती का महत्व
Chinnamasta Jayanti Importance |
Chinnamasta Jayanti Importance: देवी छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं (Dasa Mahavidyas) में छठी मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी छिन्नमस्ता ने अपने सहयोगियों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट दिया था। माता छिन्नमस्ता देश के कई हिस्सों में प्रचंड चंडिका (Prachanda Chandika) के नाम से भी लोकप्रिय हैं। इनकी पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत और नेपाल में की जाती है। मां छिन्नमस्ता के मंदिर ओडिशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, यूपी के पूर्वी हिस्सों और नेपाल में स्थित हैं। हिमाचल प्रदेश में मां चिंतपूर्णी और झारखंड में मां छिन्नमस्ता को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर हैं।
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मां छिन्नमस्ता जयंती वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष के 14वें दिन (चतुर्दशी तिथि) को मनाई जाती है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मई या अप्रैल के महीने में आती है। इसके अलावा और क्या है छिन्नमस्ता जयंती का महत्व आइए जानते हैं...
छिन्नमस्ता जयंती का महत्व (Chinnamasta Jayanti Ka Mahatva)
मां छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में छठी महाविद्या मानी जाती हैं। इन्हें स्वयंभू देवी के रूप में जाना जाता है। मां छिन्नमस्ता को प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है। अगर मां के स्वरूप की बात की जाए तो इन्होंने अपने एक हाथ में अपना सिर और दूसरे हाथ में कृपाण को पकड़ रखा है। इनके गले से तीन खून की धराएं निकल रही हैं। जिसमें से दो खून की धराएं उनके सेवकों की सहायता कर रही हैं। वहीं तीसरी खून की धारा का मां स्वंय सेवन कर रही हैं।
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मां छिन्नमस्ता को करोड़ो सूर्य की भांति उज्जवल माना जाता है। इनका रंग गुड़हल के फूल के समान है। मां छिन्नमस्ता की पूजा शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। छिन्नमस्ता जयंती देवी छिन्नमस्ता को समर्पित एक दिन है। जो मां काली के पूर्नजन्म से जुड़ा हुआ है। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मां छिन्नमस्ता जयंती मनाई जाती है।
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