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Jagannath Rath Yatra Importance: जानिए क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व

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Jagannath Rath Yatra Importance

Jagannath Rath Yatra Importance:  जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा (Jagannath Puri Rath Yatra) भारत के सबसे बड़े धार्मिक त्योहारों में से एक है। एक बात जो इस त्योहार को अद्वितीय बनाती है वह यह है कि तीन हिंदू देवताओं की मूर्तियों को एक रंगीन जुलूस में अपने भक्तों से मिलने के लिए उनके मंदिरों से बाहर ले जाया जाता है। वैसे तो भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) की यह रथ यात्रा सुदूर पूर्वी राज्य उड़ीसा में निकाली जाती है, लेकिन देश के अन्य हिस्सों और खासकर पश्चिमी राज्य गुजरात में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत अधिक प्रभाव होता है।

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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा दुनिया की सबसे पुरानी रथ यात्रा परंपरा मानी जाती है। यह जुलूस भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और छोटी बहन सुभद्रा की एक मंदिर से दूसरे मंदिर तक की यात्रा का प्रतीक है, जिसमें भक्त इन तीनों देवताओं के दर्शन करते हैं। यह रथ यात्रा उनके गृह मंदिर से दूसरे मंदिर तक होती है, जिसे भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का उल्लेख हमें कुछ पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। इसके अलावा और क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व आइए जानते हैं...

जगन्नाथ यात्रा का महत्व (Jagannath Yatra Ka Mahatva) 

उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा और भव्य मंदिर माना जाता है। जो लगभग 4 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। इस मंदिर में  भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। यह मंदिर हिंदूओं के चार धामों में से एक भी माना जाता है। 

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भगवान जगन्नाथ की यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है। जो बहुत ही भव्य होती है और इस भगवान जगन्नाथ के इस रथ को खींचने के लिए देशभर से लोग यहां आते हैं। भगवान जगन्नाथ के भक्तों का मानना है कि ऐसा करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी और इस रथ यात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का भी अवसर प्राप्त होता है। 

यह दस दिवसीय पर्व होता है। जिसकी तैयारी अक्षय तृतीया से ही शुरू हो जाती है। इस यात्रा के लिए  बलराम, श्री कृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं। इस रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी फिर देवी सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।


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