Jagannath Rath Yatra: जानिए कैसे निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा
Jagannath Rath Yatra |
रथयात्रा के दिन, सैकड़ों भक्त एक साथ इन रथों को खींचने के लिए आगे बढ़ते हैं। यह प्रसिद्ध रथयात्रा 1960 के दशक से भारत के विभिन्न शहरों में मनाई जाती है। इस यात्रा में न केवल हिंदू बल्कि बौद्ध धर्म के लोग भी रथयात्रा में भाग लेकर इस त्योहार को मनाते हैं। इसके अलावा यह दिन भगवान जगन्नाथ के अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ उनके जन्मस्थान गुंडिचा मंदिर की यात्रा की याद दिलाता है। तो बिना किसी देरी के चलिए जानते हैं जगन्नाथ यात्रा के रथ के प्रकार और कैसे निकाली जाती है जगन्नाथ यात्रा।
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जगन्नाथ यात्रा के रथ के प्रकार (Jagannath Yatra Ke Rath Ke Prakar)
1.जगन्नाथ जी के रथ को 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहा जाता है।
2. बलराम जी के रथ को 'तलध्वज' कहा जाता है।
3.सुभद्रा जी का रथ "देवदलन" व "पद्मध्वज' कहा जाता है।
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कैसे निकाली जाती है रथ यात्रा (Kaise Nikali Jati Hai Jagannath Yatra)
रथ यात्रा की पहांडी परंपरा
रथ यात्रा की पहांडी अनुसार बलभद्र, सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा कराई जाती है। पुराणों के अनुसार गुंडिचा को भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त माना जाता था। इसी कारण से हर साल बलभद्र, सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण गुंडिचा से मिलने के लिए यहां पर आते हैं।
रथ यात्रा की छेरा पहरा परंपरा
रथ यात्रा की छेरा पहरा परंपरा के अनुसार पुरी के प्रधान गजपति महाराज सोने की झाडू से रथ को साफ करते हैं। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने गरीब सुदामा को भी अपने गले से लगाया था। इसलिए उनके सामने प्रत्येक व्यक्ति बराबर है। इसलिए कोई गरीब हो या राजा वह भगवान के मंदिर में एक समान ही है। इस परंपरा को रथ यात्रा के दौरान दो बार निभाया जाता है। पहले तो जब रथ को गुंडिचा मंदिर पहुंचाया जाता है और दूसरी बार जब रथा यात्रा को जगन्नाथ मंदिर तक वापस लाया जाता है। गुंडिचा मंदिर पहुंचने के बाद भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र जी को पूरे विधि विधान के साथ स्नान कराकर उन्हें साफ वस्त्र धारण कराए जाते हैं। जगन्नाथ यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी मनाई जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को ढुंढती हुई आती हैं और भगवान मंदिर से निकलकर यात्रा पर चले जाते हैं।
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