Dev Uthani Ekadashi 2024 Kab Ki Hai: देवउठनी एकादशी 2024 में कब है, जानिए शुभ मुहूर्त और देवउठनी एकादशी की कथा
Dev Uthani Ekadashi 2024 Kab Ki Hai |
12 नवंबर 2024
देवउठनी एकादशी 2024 शुभ मुहूर्त (Dev Uthani Ekadashi 2024 Subh Muhurat)
देवउठनी एकादशी तिथि प्रारम्भ - शाम 6 बजकर 46 मिनट से (11 नवंबर 2024)
देवउठनी एकादशी तिथि समाप्त - अगले दिन शाम 4 बजकर 04 तक (12 नवंबर 2024)
देवउठनी एकादशी पर व्रत के पारण का समय- सुबह 06 बजकर 42 मिनट से सुबह 8 बजकर 51 मिनट तक (13 नवंबर 2024)
देवउठनी एकादशी की कथा (Dev Uthani Ekadashi Story)
देवउठनी एकादशी व्रत कथा के अनुसार एक समय की बात है, एक राजा था। उसके राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। एकादशी के दिन पूरे राज्य में किसी को भी भोजन नहीं परोसा जाता था।
एक दिन एक आदमी नौकरी की तलाश में राजा के दरबार में आया। उसकी बातें सुनकर राजा ने कहा कि उसे नौकरी तो मिल जाएगी, परन्तु एकादशी के दिन भोजन नहीं मिलेगा। नौकरी मिलने की खुशी में उस व्यक्ति ने राजा की बात मान ली।
कुछ दिनों के बाद एकादशी आ गई और सभी व्रत करने लगे। वह राजा के पास भोजन मांगने गया। उसने राजा से कहा कि फल उसकी भूख के लिए पर्याप्त नहीं हैं और वह पर्याप्त भोजन के बिना मर जाएगा। इसलिए उसे जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। इस पर राजा ने एकादशी का व्रत करने की अपनी शर्त दोहराई।
उस व्यक्ति ने फिर कहा कि वह भोजन के बिना भूखा मर जाएगा। अत: राजा ने उसे भोजन में आटा, दाल, चावल दिए। उसे ग्रहण करने के बाद उसने स्नान किया और नदी तट पर भोजन बनाया। उन्होंने तैयारी के बाद भगवान को निमंत्रण दिया। भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और वहां भोजन करने आए। भोजन के बाद वह अपने काम में लग गया।
अगली एकादशी में उसने और अनाज मांगा। राजा ने आश्चर्य से पूछा कि तुम्हें अधिक अनाज की आवश्यकता क्यों है? उसने उत्तर दिया कि चूँकि वह भूखा था इसलिए भगवान ने उसके पास भोजन रखा था। इसलिए, जितना अनाज चढ़ाया गया, उससे उनके पेट का अहसास नहीं हुआ। चकित राजा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। इसी कारण वह राजा को अपने साथ ले गया।
घर पहुंच कर उसने स्नान किया और खाना बनाया। साथ ही उसने भगवान को निमंत्रण भी दिया। लेकिन इस बार भगवान नहीं आए। वह शाम तक भगवान का इंतजार करता रहा। राजा पेड़ के पीछे छुपकर सब कुछ देख रहा था। अंत में उसने कहा, हे भगवान, यदि आप भोजन करने नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर अपनी जान दे दूंगा।
फिर भी भगवान नहीं आए तो वह उस नदी की ओर जाने लगा। जैसे ही वह वहां पहुंचा, भगवान प्रकट हो गये। दोनों ने साथ में खाना खाया और भगवान से आशीर्वाद मांगा। इसके बाद वह भगवान को लेकर अपने घर चला गया।
यह देखकर राजा को एहसास हुआ कि भगवान को भक्ति के घमंड की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें प्रसन्न करने के लिए सच्ची भावना ही काफी है। इसके बाद राजा भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत करने लगा। जिसके बाद उसे अंतिम समय में स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
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